फाइनेंस क्या है? इसे कैसे सीखें और उपयोग करें (Finance Meaning in Hindi)
फाइनेंस शब्द को हम अक्सर सुनते हैं, खासकर जब बात पैसों, व्यापार, या सरकार की होती है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि फाइनेंस का असली मतलब क्या है और यह क्यों महत्वपूर्ण है? सरल शब्दों में, फाइनेंस पैसे का प्रबंधन करने की कला है। किसी भी कंपनी, सरकार या व्यक्ति को अपने कार्यों को सही तरीके से चलाने के लिए पैसे की आवश्यकता होती है। यही फाइनेंस का काम है – पैसों का सही तरीके से इस्तेमाल, बचत, निवेश और भविष्य के लिए तैयार रहना। यह केवल कागजी या बैंक बैलेंस तक सीमित नहीं है, बल्कि इसमें आपकी आर्थिक स्थिति को समझने और उसे बेहतर बनाने के तरीके शामिल हैं।
चाहे आप कोई बिज़नेस चला रहे हों या फिर परिवार के लिए बजट बना रहे हों, फाइनेंस से जुड़े निर्णय हर जगह ज़रूरी होते हैं। समझदारी से किया गया वित्तीय प्रबंधन आपके भविष्य को सुरक्षित करता है और आर्थिक लक्ष्यों को प्राप्त करने में मदद करता है। तो चलिए, जानते हैं फाइनेंस के बारे में और इसे कैसे प्रभावी रूप से अपने जीवन में लागू कर सकते हैं!
फाइनेंस क्या है?| What Is Finance?
फाइनेंस शब्द फ्रेंच भाषा से लिया गया है और इसका इस्तेमाल 1800 के दशक से शुरू हुआ था। हिंदी में इसे “वित्त” कहा जाता है, जिसका मतलब होता है पैसे का सही तरीके से प्रबंधन और उपयोग। यह किसी भी प्रकार के पैसे से जुड़ी गतिविधियों को कवर करता है, जैसे निवेश, खर्च, उधारी, आदि। अगर आप इस क्षेत्र में अध्ययन करना चाहते हैं, तो आपको अर्थशास्त्र के बारे में जानना होगा, क्योंकि ये दोनों एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं।
किसी भी व्यापार या कंपनी को चलाने के लिए पैसे की जरूरत होती है, और यही काम वित्त करता है। वित्त का मतलब है, पैसे का सही तरीके से प्रबंधन, जैसे बैंकिंग, निवेश, उधारी, संपत्ति और देनदारियों को संभालना। यह उस प्रक्रिया को समझता है, जो पैसे को बचाने, बढ़ाने और सही दिशा में इस्तेमाल करने के बारे में होती है। हर व्यक्ति, कंपनी और सरकार अपने पैसों का सही तरीके से प्रबंधन करने के लिए वित्त का सहारा लेते हैं।
वित्त का इतिहास: कब और कैसे शुरू हुआ पैसे का खेल? (History of Finance)
वित्त का इतिहास बहुत पुराना है। 1940 और 1950 के दशकों में, वित्त को अलग से एक महत्वपूर्ण क्षेत्र के रूप में जाना जाने लगा। इस क्षेत्र में काम करने वाले प्रमुख विद्वानों जैसे हैरी मार्कोविट्ज़ और विलियम शार्प ने इसके विकास में योगदान दिया।
प्राचीन सभ्यताओं में भी वित्तीय लेन-देन होते थे। सुमेर और बेबीलोन में करीब 1800 ईसा पूर्व के आसपास ऋण और संपत्ति से जुड़े नियम बन चुके थे। चीन में 1200 ईसा पूर्व तक कौड़ी के गोले को पैसे के रूप में इस्तेमाल किया जाता था। लिडिया (अब तुर्की) के राजा क्रोएसस ने 564 ईसा पूर्व में सोने के सिक्कों की शुरुआत की।
प्राचीन रोम में मंदिरों में पैसा जमा होता था और मंदिर पैसे उधार भी देते थे। इस तरह समय के साथ वित्त का स्वरूप बदलता गया और यह आज के वित्तीय सिस्टम की शुरुआत बनी।
वित्त कैसे काम करता है? जानें इसके पीछे का विज्ञान! (How Finance Works)
वित्त का काम इस बात पर निर्भर करता है कि पैसे का सही तरीके से प्रबंधन, निवेश और उपयोग कैसे किया जाता है। इसे तीन मुख्य भागों में बांटा जा सकता है: सार्वजनिक वित्त, कॉर्पोरेट वित्त और व्यक्तिगत वित्त। सार्वजनिक वित्त में सरकार के खर्च, कर प्रणाली, बजट बनाना और ऋण से जुड़ी बातें आती हैं। कॉर्पोरेट वित्त में कंपनियाँ अपने पैसे, संपत्तियाँ और कर्ज का सही तरीके से प्रबंधन करती हैं ताकि वे अपने उद्देश्यों को पूरा कर सकें।
व्यक्तिगत वित्त में एक व्यक्ति या परिवार अपने पैसे को सही तरीके से संभालता है, जैसे बजट बनाना, बचत करना, बीमा लेना और भविष्य के लिए योजना बनाना। कुल मिलाकर, वित्त का उद्देश्य पैसे का सही उपयोग करना, उसे बढ़ाना और आर्थिक सुरक्षा प्राप्त करना होता है।
वित्तीय शर्तें: क्या होती हैं और क्यों हैं महत्वपूर्ण? (Finance Terms)
- ब्याज दर (Interest Rate) – यह वह प्रतिशत होता है, जो उधारी पर या निवेश पर समय के साथ जुड़ता है। इसका मतलब है कि जो पैसा आपने उधार लिया है या निवेश किया है, उस पर कितना अतिरिक्त पैसा लगेगा।
- ऋण (Loan) – जब आप किसी से पैसा उधार लेते हैं और उसे वापस करते हैं, तो वह ऋण कहलाता है। इस पर ब्याज भी लगाया जा सकता है।
- शेयर (Shares) – यह कंपनी का एक छोटा हिस्सा होता है। जब आप शेयर खरीदते हैं, तो आप उस कंपनी के मालिक बनते हैं और कंपनी के लाभ में हिस्सा पाते हैं।
- मूल्यांकन (Valuation) – यह किसी चीज़ का मूल्य जानने की प्रक्रिया है। जैसे, किसी संपत्ति, कंपनी या निवेश का मूल्य निर्धारित करना।
- वापसी दर (Return on Investment – ROI) – यह एक प्रतिशत में मापता है कि आपने किसी निवेश से कितना लाभ कमाया। यह बताता है कि आपने जितना निवेश किया, उस पर कितनी कमाई हुई।
- लाभांश (Dividend) – यह कंपनी द्वारा अपने शेयरधारकों को लाभ के रूप में दी जाती है। यह आमतौर पर कंपनी के मुनाफे का एक हिस्सा होता है।
- संपत्ति (Asset) – यह वह चीज़ होती है जिसका मूल्य होता है, जैसे कि घर, गाड़ी, नकद आदि। यह आपकी संपत्ति का हिस्सा होती है।
- बैलेंस शीट (Balance Sheet) – यह एक वित्तीय दस्तावेज़ है, जो यह दिखाता है कि किसी कंपनी के पास कितनी संपत्ति है और उस पर कितनी देनदारियां हैं।
- नकदी प्रवाह (Cash Flow) – यह उस पैसे की आवाजाही को दर्शाता है, जो आपके पास आता है और जाता है। यह बताता है कि आपके पास कितनी नकद राशि मौजूद है।
- चक्रवृद्धि ब्याज (Compound Interest) – यह वह ब्याज है जो मूलधन और पहले से अर्जित ब्याज दोनों पर लगता है। यह साधारण ब्याज से ज्यादा लाभकारी होता है।
- इक्विटी (Equity) – यह किसी कंपनी में आपका हिस्सा होता है। जब आप कंपनी के शेयर खरीदते हैं, तो आप उस कंपनी के मालिक बन जाते हैं।
- तरलता (Liquidity) – यह उस संपत्ति को जल्दी नकद में बदलने की क्षमता होती है। जैसे, बैंक में रखा पैसा जल्दी उपयोग किया जा सकता है, जबकि संपत्ति बेचने में समय लगता है।
फाइनेंस के प्रकार (Types of Finance)
वयक्तिगत वित्त (Personal Finance meaning in Hindi)
पर्सनल फाइनेंस का मतलब है अपने व्यक्तिगत धन का सही तरीके से प्रबंधन करना। यह एक ऐसा तरीका है जिससे व्यक्ति अपनी आय, खर्चों, बचत, निवेश और कर्ज को नियंत्रित करता है ताकि वह अपनी वित्तीय स्थिति को मजबूत बना सके और भविष्य के लिए तैयार हो सके। इसमें न केवल वर्तमान खर्चों को संतुलित करना, बल्कि आने वाले समय के लिए योजना बनाना भी शामिल है।
व्यक्तिगत वित्त का सबसे अहम पहलू यह है कि व्यक्ति अपनी वर्तमान स्थिति का मूल्यांकन करे और भविष्य के लिए बजट तैयार करे। इसे समझने के लिए, हमें अपनी आय और खर्चों का सही हिसाब रखना चाहिए, साथ ही हर महीने थोड़ी-थोड़ी बचत भी करनी चाहिए। इसके अलावा, बीमा और पेंशन योजनाओं में निवेश करके हम किसी भी वित्तीय संकट से बच सकते हैं। पहले यह माना जाता था कि केवल गृहिणियां ही इस क्षेत्र से जुड़ी रहती हैं, लेकिन अब यह हर किसी के लिए एक महत्वपूर्ण विषय बन गया है। व्यक्तिगत वित्त न केवल हमारे निजी जीवन को प्रभावित करता है, बल्कि यह पूरे देश की अर्थव्यवस्था पर भी असर डालता है।
निगम वित्त (Corporate Finance meaning in Hindi)
एक कंपनी के पैसे से जुड़े फैसले लेने का तरीका है। इसका मुख्य उद्देश्य यह है कि कंपनी अपने पैसे का सही इस्तेमाल करे, जिससे उसे कम जोखिम में ज्यादा मुनाफा हो सके। इसमें कंपनी के लिए पैसा जुटाने, निवेश करने, उधारी का सही तरीके से प्रबंधन करने और शेयरधारकों के फायदे को बढ़ाने के तरीके शामिल होते हैं।
कंपनियां विभिन्न तरीकों से पैसे जुटाती हैं, जैसे बैंक से ऋण लेना, शेयर जारी करना, या निवेशकों से पैसे जुटाना। छोटे व्यवसाय एंजेल निवेशक या वेंचर कैपिटल से पूंजी जुटाते हैं, जबकि बड़े व्यवसाय अपने IPO से पैसे जुटाते हैं। इसके अलावा, कंपनियां बॉन्ड जारी कर सकती हैं या दूसरी कंपनियों को खरीदने के लिए पैसे जुटाती हैं। उदाहरण के तौर पर:
- टेस्ला ने 2020 में स्टॉक बेचकर $5 बिलियन जुटाए, जिससे उसने अपने उत्पादन को बढ़ाया।
- एयरबीएनबी ने 2020 में IPO के जरिए $3.5 बिलियन जुटाए, जिससे कंपनी ने अपनी सेवाओं का विस्तार किया।
- उबर ने 2019 में अपने IPO से $8.1 बिलियन जुटाए, जिससे उसने अपनी वैश्विक उपस्थिति को और मजबूत किया।
सामाजिक वित्त (Social Finance)
सामाजिक वित्त का मतलब है ऐसे निवेश करना जो समाज में सुधार लाने में मदद करें। ये निवेश आम तौर पर धर्मार्थ संगठनों और सहकारी समितियों में किए जाते हैं। जब लोग सामाजिक वित्त में निवेश करते हैं, तो उनका उद्देश्य केवल पैसे कमाना नहीं होता, बल्कि वे चाहते हैं कि उनका पैसा समाज में अच्छा बदलाव लाए। यह निवेश ऋण या शेयर के रूप में हो सकता है, और इसका मुख्य उद्देश्य उन लोगों या समुदायों की मदद करना है जो आर्थिक रूप से कमजोर हैं। जैसे, माइक्रोफाइनेंस के जरिए छोटे व्यापारियों को कर्ज दिया जाता है ताकि वे अपने व्यवसाय को बढ़ा सकें और अपने जीवन स्तर को सुधार सकें।
इसके अलावा, सामाजिक प्रभाव बांड (Social Impact Bonds) भी एक प्रकार का निवेश है, जिसमें निवेशक कुछ खास सामाजिक बदलाव या लक्ष्यों को हासिल करने के लिए पैसा लगाते हैं। इस तरह के निवेश में, निवेशकों को तब तक मुनाफा नहीं मिलता जब तक वह सामाजिक उद्देश्य पूरा नहीं हो जाता। इसका मतलब है कि निवेशकों का पैसा केवल तभी वापस आता है जब कुछ अच्छे परिणाम हासिल होते हैं, जैसे कि शिक्षा या स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार।
सार्वजनिक वित्त (Public Finance meaning in Hindi)
सार्वजनिक वित्त का मतलब है सरकार द्वारा अपने पैसे का सही तरीके से प्रबंधन करना। इसमें केंद्र सरकार, राज्य सरकार और स्थानीय सरकार के द्वारा की जाने वाली आय और खर्च की गतिविधियाँ शामिल हैं। सरकार अपनी आय मुख्य रूप से टैक्स (कर) से प्राप्त करती है, और इस पैसे का इस्तेमाल शिक्षा, स्वास्थ्य, सड़क निर्माण, बिजली, पानी जैसी जरूरी सेवाओं पर खर्च करती है।
सार्वजनिक वित्त का मुख्य उद्देश्य है समाज के विकास के लिए जरूरी सेवाओं को सही तरीके से वित्तपोषित करना। सरकार टैक्स, उधारी, सरकारी बॉंड्स और अन्य स्रोतों से पैसे इकट्ठा करती है। इसके अलावा, सरकार विभिन्न सेवाओं के लिए उपयोगकर्ता शुल्क और जुर्माना भी वसूल करती है। इस तरह से, सार्वजनिक वित्त समाज की जरूरतों को पूरा करने और अर्थव्यवस्था को स्थिर बनाए रखने में मदद करता है।
डेफिसिट फाइनेंसिंग (Deficit Financing meaning in Hindi)
डेफिसिट फाइनेंसिंग का मतलब होता है जब सरकार की आमदनी से ज़्यादा खर्च हो जाता है और उस खर्च की भरपाई करने के लिए सरकार बाहर से उधार लेती है या नए नोट छापती है। जब टैक्स और दूसरे साधनों से मिलने वाला पैसा सरकार के खर्चों के लिए कम पड़ता है, तब यह तरीका अपनाया जाता है। डेफिसिट फाइनेंसिंग ज़्यादातर तब होती है जब सरकार को सड़क, अस्पताल, स्कूल, या रोज़गार जैसे ज़रूरी कामों के लिए ज़्यादा पैसा चाहिए होता है। आसान भाषा में कहें तो, डेफिसिट फाइनेंसिंग का मतलब है खर्च की कमी को पूरा करने के लिए पैसा जुटाना।
फाइनेंस कन्करेंस (Finance Concurrence meaning in Hindi)
Finance Concurrence का मतलब होता है किसी खर्च या योजना पर वित्त विभाग की मंजूरी लेना। जब कोई सरकारी दफ्तर या विभाग कोई नया काम शुरू करना चाहता है जिसमें पैसे खर्च होने हों, तो उस पर सीधा खर्च करने से पहले फाइनेंस कन्करेंस लेना ज़रूरी होता है। इसका मतलब यह है कि पैसा खर्च करने से पहले वित्त विभाग यह देखे कि खर्च जरूरी है या नहीं, और सरकार के नियम और बजट के अंदर है या नहीं। बिना फाइनेंस कन्करेंस के कोई भी बड़ा खर्च या योजना आगे नहीं बढ़ाई जा सकती। इससे सरकारी पैसे का सही इस्तेमाल सुनिश्चित होता है।
फाइनेंस कमीशन (Finance Commission meaning in Hindi)
फाइनेंस कमीशन का मतलब होता है एक ऐसा सरकारी दल जिसे वित्त आयोग कहते हैं। यह दल सरकार के पैसे को केंद्र और राज्यों में बांटने का काम करता है। जब सरकार टैक्स या दूसरे स्रोतों से पैसा जमा करती है, तो फाइनेंस कमीशन यह तय करता है कि कितना पैसा राज्यों को देना है। यह आयोग कुछ समय के लिए बनता है और हर राज्य को उसका हिस्सा सही तरीके से मिले, इसके लिए नियम बनाता है। आसान भाषा में, फाइनेंस कमीशन सरकार के पैसे को सही और बराबर बांटने वाला समूह है ताकि हर राज्य अपने काम अच्छे से कर सके।
फाइनेंस कंसल्टेंट (Finance Consultant meaning in Hindi)
फाइनेंस कंसल्टेंट का मतलब होता है वो व्यक्ति जो आपको पैसे से जुड़े सवालों में सही सलाह देता है। वह यह समझाता है कि पैसा कैसे बचाएं, कहाँ निवेश करें और खर्चों को कैसे सही तरीके से संभालें ताकि आर्थिक नुकसान न हो। एक अच्छा फाइनेंस कंसल्टेंट आपकी जरूरत और हालात को समझकर सही योजना बनाता है ताकि आप पैसे का सही इस्तेमाल कर सकें। सरल भाषा में कहें तो, फाइनेंस कंसल्टेंट वह मददगार होता है जो आपके पैसे को समझदारी से बढ़ाने में आपकी मदद करता है।
लीज फाइनेंसिंग (Lease Financing meaning in Hindi)
लीज फाइनेंसिंग का मतलब होता है जब कोई आदमी या कंपनी बड़ी चीज़, जैसे गाड़ी या मशीन, खरीदने के बजाय उसे कुछ समय के लिए किराए पर लेती है और उसका पैसा धीरे-धीरे चुकाती है। इसे हिंदी में लीज वित्तपोषण कहते हैं। इस तरह से पूरा पैसा एक साथ खर्च नहीं करना पड़ता और जरूरत की चीज़ इस्तेमाल में आ जाती है। लीज फाइनेंसिंग से छोटे-बड़े काम करने वाले आसानी से जरूरी सामान ले सकते हैं बिना ज्यादा पैसा दिए। सरल भाषा में, लीज फाइनेंसिंग मतलब चीज़ किराए पर लेना और पैसे किस्तों में देना।
फाइनेंसर (Financer meaning in Hindi)
फाइनेंसर का मतलब होता है ऐसा आदमी या संस्था जो किसी को पैसा उधार देता है या किसी काम में पैसे से मदद करता है। जब कोई नया काम शुरू करना हो, जैसे दुकान खोलनी हो या कारोबार बढ़ाना हो, तो फाइनेंसर उस काम के लिए पैसा लगाता है। बदले में वह कुछ ब्याज या मुनाफा लेता है। आसान भाषा में कहें तो फाइनेंसर वह होता है जो जरूरत के वक्त पैसा देकर मदद करता है ताकि कोई अपना काम शुरू या पूरा कर सके।
फाइनेंस में करियर बनाने के 10 तरीके (Careers in Finance)
फाइनेंस एक ऐसा क्षेत्र है, जहां करियर बनाने के कई अवसर हैं। यदि आप भी इस क्षेत्र में काम करना चाहते हैं, तो आपके पास कई तरह के विकल्प हैं। यहां हम फाइनेंस से जुड़े 10 करियर विकल्पों के बारे में जानेंगे, जो आपके लिए फायदेमंद हो सकते हैं।
- अकाउंटेंट (Accountant)
अकाउंटेंट का काम कंपनी के सारे वित्तीय रिकॉर्ड को संभालना और खर्चों पर नजर रखना होता है। वे रिपोर्ट तैयार करते हैं, ताकि कंपनी के पैसे का सही हिसाब रखा जा सके।
- ऑडिटर (Auditor)
ऑडिटर का काम यह सुनिश्चित करना होता है कि कंपनी के सारे वित्तीय दस्तावेज सही हैं। वे आंतरिक जांच करते हैं और किसी कंपनी के वित्तीय लेन-देन का सही तरीके से मूल्यांकन करते हैं।
- बैंकर (Banker)
बैंकर का काम बैंकिंग सेवाएं देना होता है, जैसे अकाउंट खोलना, ऋण देना और निवेश योजनाएं तैयार करना। वे बैंक के कामकाज को संभालते हैं और ग्राहकों के लिए वित्तीय सेवाएं प्रदान करते हैं।
- पूंजी प्रबंधक (Capital Manager)
पूंजी प्रबंधक का काम कंपनी के पैसों का सही तरीके से निवेश करना होता है। वे यह तय करते हैं कि कंपनी को कहां और कैसे निवेश करना चाहिए, ताकि अधिक लाभ हो सके।
- ऋणदाता (Lender)
ऋणदाता वह व्यक्ति होता है जो पैसे उधार देता है। वे यह जांचते हैं कि किसी व्यक्ति या कंपनी को उधार देना सुरक्षित है या नहीं। वे ऋण देने से पहले कई पहलुओं का मूल्यांकन करते हैं।
- बाजार विश्लेषक (Market Analyst)
बाजार विश्लेषक वित्तीय बाजारों का अध्ययन करते हैं और यह बताते हैं कि बाजार में किस दिशा में बदलाव हो सकते हैं। वे निवेशकों को सही दिशा में निवेश करने के लिए सुझाव देते हैं।
- वित्तीय योजनाकार (Financial Planner)
वित्तीय योजनाकार किसी व्यक्ति या परिवार को उनके पैसे को सही तरीके से खर्च करने और बचाने के बारे में सलाह देते हैं। वे यह मदद करते हैं कि व्यक्ति अपनी भविष्य की जरूरतों को पूरा करने के लिए कैसे योजना बनाएं।
- निवेश विश्लेषक (Investment Analyst)
निवेश विश्लेषक का काम यह देखना होता है कि कहां निवेश किया जाए, जिससे अच्छा मुनाफा मिले। वे विभिन्न निवेश विकल्पों का विश्लेषण करते हैं और निवेशकों को सलाह देते हैं।
- जोखिम प्रबंधक (Risk Manager)
जोखिम प्रबंधक का काम यह होता है कि वे किसी कंपनी के लिए संभावित जोखिमों को पहचानें और इनसे बचने के उपाय ढूंढें। वे कंपनी को वित्तीय संकट से बचाने के लिए योजनाएं तैयार करते हैं।
- वित्तीय रिपोर्टिंग विशेषज्ञ (Financial Reporting Specialist)
यह पेशेवर कंपनी के वित्तीय प्रदर्शन पर रिपोर्ट तैयार करते हैं। वे यह सुनिश्चित करते हैं कि रिपोर्ट पूरी तरह से सही हो और कंपनी के निवेशकों और अन्य अधिकारियों को सही जानकारी मिल सके।
फाइनेंस कैसे सीखें (How to Learn Finance)
वित्त के क्षेत्र में करियर बनाने के लिए कई रास्ते हैं, और इनमें से किसी एक रास्ते को चुनने से पहले आपको अपनी रुचि और लक्ष्य को समझना जरूरी है। सबसे पहले, वित्त में स्नातक (B.Com, BBA) करना एक अच्छा विकल्प है, जिससे आप वित्त के मूल विषयों जैसे कि खाता-बही, बजट, निवेश और टैक्स को समझ सकते हैं। इसके बाद, अगर आप अपनी समझ को और गहरा करना चाहते हैं, तो आप वित्त में मास्टर डिग्री (M.Com, MBA Finance) ले सकते हैं। इससे आपको कॉर्पोरेट वित्त, निवेश, और जोखिम प्रबंधन जैसे क्षेत्रों में विशेषज्ञता मिलती है।
इसके अलावा, अगर आप पहले से किसी अन्य क्षेत्र में स्नातक कर चुके हैं, तो आप चार्टर्ड फाइनेंशियल एनालिस्ट (CFA) बन सकते हैं, जो वित्तीय विशेषज्ञता में एक महत्वपूर्ण प्रमाणपत्र है। इसके लिए आपको तीन कठिन परीक्षाएं पास करनी होती हैं। अगर आपको व्यक्तिगत वित्तीय योजना में रुचि है, तो सर्टिफाइड फाइनेंशियल प्लानर (CFP) भी एक बेहतरीन विकल्प है। इन सब प्रमाणपत्रों से आप अपने वित्तीय करियर को एक नई दिशा दे सकते हैं।
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अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQ)
फाइनेंस मीनिंग इन हिंदी
फाइनेंस का मतलब होता है “वित्तीय प्रबंधन” यानि पैसे का सही तरीके से उपयोग, निवेश, उधारी और खर्चों का संतुलन। यह न केवल व्यक्तिगत जीवन, बल्कि कंपनियों और सरकारी संस्थाओं के वित्तीय कार्यों को भी व्यवस्थित करता है। इसका उद्देश्य पैसे को सही दिशा में लगाना और उसे बढ़ाना होता है।
फाइनेंस में क्या काम होता है?
फाइनेंस में पैसों का सही तरीके से प्रबंधन, निवेश करना, और आर्थिक फैसले लेना शामिल होता है, जिससे व्यक्ति या संस्था की वित्तीय स्थिति मजबूत और सुरक्षित बन सके। इसका मुख्य उद्देश्य पैसे को बढ़ाना और भविष्य में संभावित जोखिमों से बचाव करना है।