रेलवे में इलेक्ट्रिकल इंजीनियर: कैसे बने, क्या काम होता है और सैलरी कितनी होती है?
भारतीय रेलवे का विशाल नेटवर्क सिर्फ ट्रेनों और पटरियों का जाल नहीं है, बल्कि इसके पीछे अनगिनत तकनीकी विशेषज्ञों की मेहनत छिपी होती है। इन्हीं में से एक बेहद अहम भूमिका निभाते हैं रेलवे में इलेक्ट्रिकल इंजीनियर, जो बिजली आपूर्ति से लेकर सिग्नलिंग, ट्रैक्शन और ट्रेन की सुरक्षा प्रणाली तक हर महत्वपूर्ण काम को संभालते हैं।
आज के इस आर्टिकल में हम समझेंगे कि रेलवे में इलेक्ट्रिकल इंजीनियर कैसे बने, वो रोज़ क्या-क्या काम करते हैं, उनकी सैलरी कितनी होती है और रेलवे में किस-किस प्रकार के इंजीनियरिंग पद मौजूद होते हैं। अगर आप रेलवे में करियर बनाने का सपना रखते हैं, तो यह जानकारी आपके लिए काफी मददगार साबित होगी।
रेलवे में इलेक्ट्रिकल इंजीनियर कैसे बने?
रेलवे में इलेक्ट्रिकल इंजीनियर बनने का रास्ता उतना मुश्किल नहीं है जितना लोग सोचते हैं। असल में, आपको बस सही दिशा में पढ़ाई करनी होती है और रेलवे की प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करनी होती है। जब आप हर कदम को धीरे-धीरे समझते हैं, तो यह सफर खुद-ब-खुद आसान और स्पष्ट लगने लगता है।
1. सही पढ़ाई से शुरुआत करें
सबसे पहले आपको इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग का कोई कोर्स करना होता है। इसके लिए आपके पास दो मुख्य विकल्प हैं:
- 10वीं के बाद तीन साल का डिप्लोमा
- 12वीं के बाद चार साल की Tech/B.E. डिग्री
अगर आप रेलवे में अच्छी पोस्ट चाहते हैं, खासकर वो पद जहाँ ज़िम्मेदारी ज्यादा होती है, तो B.Tech करना ज्यादा फायदेमंद रहता है।
2. आगे बढ़ने के लिए डिग्री के साथ विकल्प
आजकल कुछ कॉलेज B.Tech इन रेलवे इंजीनियरिंग जैसे स्पेशलाइज्ड कोर्स भी कराते हैं। ये कोर्स सीधे रेलवे से जुड़ी तकनीकों पर ध्यान केंद्रित करते हैं। ऐसे छात्रों को रेलवे में नौकरी मिलने के समय थोड़ी बढ़त मिलती है और वे तेजी से काम में शामिल हो सकते हैं।
3. भर्ती प्रक्रिया को समझना जरूरी है
पढ़ाई पूरी होने के बाद अगला कदम रेलवे की भर्ती प्रक्रिया में भाग लेना है। इसमें मुख्यतः दो रास्ते हैं: RRB और UPSC। दोनों का उद्देश्य इलेक्ट्रिकल इंजीनियर की भर्ती करना है, लेकिन पद और जिम्मेदारियों के हिसाब से यह अलग-अलग होते हैं।
4. RRB JE – तकनीकी पदों के लिए आम रास्ता
RRB JE परीक्षा उन उम्मीदवारों के लिए होती है जिन्होंने डिप्लोमा या B.Tech किया हो। इस परीक्षा में दो कंप्यूटर-आधारित टेस्ट शामिल होते हैं। दोनों चरण सफलतापूर्वक पास करने के बाद डॉक्यूमेंट वेरिफिकेशन किया जाता है। तकनीकी क्षेत्र में सरकारी नौकरी पाने के लिए यह सबसे लोकप्रिय और आम रास्तों में से एक माना जाता है।
5. UPSC ESE – अधिकारी स्तर की नौकरी के लिए
अगर आपका सपना रेलवे में उच्च पद पर काम करने का है, तो UPSC की Engineering Services Examination (ESE) आपका मुख्य रास्ता है। इसमें तीन चरण होते हैं: प्रीलिम्स, मेन्स और इंटरव्यू। यह परीक्षा चुनौतीपूर्ण होती है, लेकिन सफल होने पर आप सीधे अधिकारी स्तर पर काम शुरू कर सकते हैं।
6. इंटरव्यू में तकनीकी ज्ञान सबसे ज्यादा मायने रखता है
चाहे आप RRB JE से जाएँ या UPSC ESE से, इंटरव्यू में आपका असली मूल्यांकन होता है। यहाँ यह देखा जाता है कि आपकी प्रैक्टिकल समझ कितनी है – जैसे ट्रैक्शन सिस्टम कैसे काम करता है, पावर सप्लाई में कोई दिक्कत आए तो आप क्या कदम उठाएंगे, और सिग्नलिंग सिस्टम में आपकी भूमिका क्या होगी।
7. मेडिकल टेस्ट अनिवार्य होता है
परीक्षाएँ और इंटरव्यू पास करने के बाद आपको मेडिकल टेस्ट भी पास करना होता है। रेलवे में सुरक्षा सर्वोपरि होती है, इसलिए यह कदम आवश्यक है। मेडिकल टेस्ट से यह सुनिश्चित किया जाता है कि आप फील्ड में काम करने के लिए शारीरिक रूप से फिट हैं और कोई जोखिम नहीं है।
8. ट्रेनिंग पूरी होने के बाद असली नौकरी शुरू होती है
सभी चरण सफलतापूर्वक पार करने के बाद उम्मीदवारों को ट्रेनिंग दी जाती है। ट्रेनिंग के दौरान यह सिखाया जाता है कि रेलवे सिस्टम ज़मीन पर कैसे काम करता है, विभिन्न मशीनें किस प्रकार संचालित होती हैं, पावर सप्लाई को कैसे मैनेज किया जाता है और मेंटेनेंस की प्रक्रिया कैसे की जाती है। ट्रेनिंग पूरी होने के बाद पोस्टिंग दी जाती है और उम्मीदवार आधिकारिक रूप से अपने तकनीकी पद पर कार्यभार संभाल लेते हैं।
रेलवे में इलेक्ट्रिकल इंजीनियर का क्या काम होता है? (Electrical Engineer Work in Railway)
रेलवे में इलेक्ट्रिकल इंजीनियर की जिम्मेदारी केवल ट्रेन चलाने या बिजली सप्लाई करने तक सीमित नहीं होती। यह एक बहुत ही महत्वपूर्ण और तकनीकी पद है, जिसमें सुरक्षा, संचालन और रख-रखाव सभी जिम्मेदारियां शामिल होती हैं। आइए विस्तार से समझते हैं कि एक इलेक्ट्रिकल इंजीनियर वास्तव में क्या-क्या करता है।

1. ट्रैक्शन और पावर सिस्टम की देखभाल
रेलवे की ट्रेनें इलेक्ट्रिक पावर पर चलती हैं। इसलिए इलेक्ट्रिकल इंजीनियर का सबसे अहम काम है कि पावर सप्लाई और ट्रैक्शन सिस्टम लगातार सही तरीके से काम कर रहे हों। इसमें लोकोमोटिव की मॉनिटरिंग, पावर डिस्ट्रिब्यूशन की जांच और किसी भी तकनीकी खराबी को तुरंत सुधारना शामिल है। उनका काम यह सुनिश्चित करना है कि ट्रेनें समय पर और सुरक्षित रूप से चलें।
2. सिग्नलिंग और सुरक्षा प्रणाली की निगरानी
रेलवे में सुरक्षा सबसे महत्वपूर्ण है। इलेक्ट्रिकल इंजीनियर सिग्नलिंग सिस्टम और सुरक्षा उपकरणों की देखभाल करता है। किसी भी फॉल्ट या खराबी की स्थिति में वह तुरंत सुधारात्मक कदम उठाता है, ताकि ट्रेनों के संचालन में कोई बाधा न आए और यात्रियों की सुरक्षा सुनिश्चित हो।
3. लोकोमोटिव और मशीनरी का रखरखाव
इलेक्ट्रिकल इंजीनियर लोकोमोटिव और अन्य इलेक्ट्रिकल मशीनरी की जांच और मेंटेनेंस करता है। इसमें मोटर, जनरेटर, ब्रेक सिस्टम और बैटरी यूनिट्स का परीक्षण और मरम्मत शामिल है। उनका काम यह सुनिश्चित करना है कि सभी मशीनें पूरी क्षमता और सुरक्षित तरीके से काम करें।
4. नई तकनीक और सिस्टम का इंस्टॉलेशन
रेलवे लगातार नई तकनीक अपनाता रहता है। इलेक्ट्रिकल इंजीनियर का काम नए पावर सिस्टम, सिग्नलिंग उपकरण और मशीनरी का इंस्टॉलेशन करना है। इसके साथ ही पुराने सिस्टम की जांच करके आवश्यक सुधार और अपग्रेडेशन करना भी उनकी जिम्मेदारी है।
5. फॉल्ट डिटेक्शन और आपातकालीन समाधान
रेलवे में किसी भी फॉल्ट का पता जल्दी लगाना और उसे तुरंत ठीक करना इंजीनियर की जिम्मेदारी है। चाहे यह ट्रैक्शन सिस्टम में खराबी हो या पावर सप्लाई में कोई गड़बड़ी, इलेक्ट्रिकल इंजीनियर तुरंत उपाय करता है। यह काम ट्रेन संचालन की सुरक्षा और समयबद्धता के लिए बेहद जरूरी है।
6. डॉक्यूमेंटेशन और रिपोर्टिंग
इलेक्ट्रिकल इंजीनियर हर काम का रिकॉर्ड भी बनाता है। इसमें मेंटेनेंस रजिस्टर अपडेट करना, फॉल्ट रिपेयर का रिकॉर्ड रखना और वरिष्ठ अधिकारियों को रिपोर्ट भेजना शामिल है। यह सुनिश्चित करता है कि रेलवे का संचालन पारदर्शी और सुव्यवस्थित रहे।
7. टीमवर्क और प्रशिक्षण
एक इलेक्ट्रिकल इंजीनियर अकेले नहीं काम करता। वह तकनीशियनों और अन्य इंजीनियर्स के साथ टीम में काम करता है। इसके अलावा नए कर्मचारियों और तकनीशियनों को ट्रेनिंग देना भी उनकी जिम्मेदारी होती है, ताकि पूरे सिस्टम में कुशलता बनी रहे।
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रेलवे में इलेक्ट्रिकल इंजीनियर आयु सीमा (Age Limit)
इस क्षेत्र में करियर बनाने के लिए उम्मीदवार की न्यूनतम आयु आमतौर पर 18 वर्ष होती है, जबकि अधिकतम आयु सामान्य वर्ग के लिए 32 वर्ष निर्धारित की गई है। आरक्षित वर्गों को आयु सीमा में छूट दी जाती है, जैसे SC/ST उम्मीदवारों को 5 वर्ष, OBC उम्मीदवारों को 3 वर्ष तथा PwD उम्मीदवारों को, विशेष रूप से SC/ST श्रेणी में, अधिकतम 15 वर्ष तक की छूट मिल सकती है। कुछ विशेष परिस्थितियों में अधिकतम आयु सीमा को 36 वर्ष तक भी बढ़ाया जा सकता है।
रेलवे में इलेक्ट्रिकल इंजीनियर की सैलरी कितनी होती है? (Electrical engineer salary in railway)
इलेक्ट्रिकल इंजीनियर की सैलरी पद, अनुभव और ज़ोन के अनुसार बदलती रहती है। यहां हम JE (Junior Engineer) और SSE (Senior Section Engineer) दोनों स्तरों की सैलरी को भत्तों सहित प्रस्तुत कर रहे हैं।
जूनियर इंजीनियर (JE – इलेक्ट्रिकल)
| घटक | विवरण |
| बेसिक पे | ₹35,400/माह (Level 6) |
| ग्रेड पे | ₹4,200 |
| महंगाई भत्ता (DA) | लगभग 46% (समय-समय पर बढ़ता है) |
| मकान किराया भत्ता (HRA) | 8% – 24% शहर वर्ग के अनुसार |
| यातायात भत्ता (TA) | ₹3,600 – ₹7,200 |
| कुल अनुमानित सैलरी | ₹50,000 – ₹65,000/माह (सभी भत्तों सहित) |
सीनियर सेक्शन इंजीनियर (SSE – इलेक्ट्रिकल)
| घटक | विवरण |
| बेसिक पे | ₹44,900/माह (Level 7) |
| ग्रेड पे | ₹4,800 |
| महंगाई भत्ता (DA) | लगभग 46% (समय-समय पर बढ़ता है) |
| मकान किराया भत्ता (HRA) | 8% – 24% शहर वर्ग के अनुसार |
| यातायात भत्ता (TA) | ₹3,600 – ₹7,200 |
| कुल अनुमानित सैलरी | ₹65,000 – ₹85,000/माह (सभी भत्तों सहित) |
इलेक्ट्रिकल इंजीनियर vs मैकेनिकल इंजीनियर
रेलवे में इलेक्ट्रिकल और मैकेनिकल इंजीनियर दोनों ही महत्वपूर्ण पद हैं, लेकिन उनके काम करने के क्षेत्र, जिम्मेदारियां और विशेषज्ञता अलग होती है। नीचे इन दोनों पदों की तुलना सरल और स्पष्ट तरीके से दी गई है।
| विशेषता | इलेक्ट्रिकल इंजीनियर | मैकेनिकल इंजीनियर |
| मुख्य कार्य क्षेत्र | पावर सप्लाई, ट्रैक्शन सिस्टम, लोकोमोटिव के इलेक्ट्रिकल सिस्टम, सिग्नलिंग और स्टेशन पावर | इंजन, ब्रेक सिस्टम, लोकोमोटिव और कोच की मशीनरी, डिपो और मेंटेनेंस शेड |
| मुख्य जिम्मेदारियां | ट्रेन और लोकोमोटिव की पावर सिस्टम मॉनिटरिंग, मेंटेनेंस, फॉल्ट डिटेक्शन और नई तकनीक इंस्टॉलेशन | इंजन और मशीनरी का रख-रखाव, मेंटेनेंस शेड सुपरविजन, ट्रेन रिपेयरिंग और संचालन में सहयोग |
| शुरुआती सैलरी (JE स्तर) | ₹50,000 – ₹65,000/माह (सभी भत्तों सहित) | ₹48,000 – ₹62,000/माह (सभी भत्तों सहित) |
| सीनियर स्तर सैलरी (SSE/AE) | ₹65,000 – ₹85,000/माह (सभी भत्तों सहित) | ₹60,000 – ₹80,000/माह (सभी भत्तों सहित) |
| कैरियर ग्रोथ | JE → SSE → Sr. SSE → Divisional Electrical Engineer → Chief Electrical Engineer | JE → SSE → Sr. SSE → Divisional Mechanical Engineer → Chief Mechanical Engineer |
| तकनीकी विशेषज्ञता | इलेक्ट्रिकल सिस्टम, ट्रैक्शन, पावर सप्लाई, सिग्नलिंग | इंजन, ब्रेक सिस्टम, लोकोमोटिव और कोच मशीनरी |
| कार्य प्रकृति | तकनीकी और सिस्टम‑फोकस्ड, फॉल्ट डिटेक्शन और इंस्टॉलेशन | तकनीकी और फील्ड‑फोकस्ड, मेंटेनेंस और रिपेयरिंग |
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निष्कर्ष (Conclusion)
रेलवे में इलेक्ट्रिकल इंजीनियर बनने के लिए सही योग्यता और तैयारी बहुत जरूरी है। यह प्रोफेशन तकनीकी ज्ञान के साथ रेलवे सिस्टम को सुचारू रूप से चलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इंडियन रेलवे में इस पद की सैलरी और करियर ग्रोथ भी इसे एक आकर्षक विकल्प बनाती है। अगर आप जानना चाहते हैं कि इस क्षेत्र में करियर कैसे बनाया जाए, तो सही दिशा में तैयारी शुरू करना ही पहला कदम है।
FAQs
1. रेलवे में इलेक्ट्रिकल इंजीनियर क्या काम करता है?
इस भूमिका में इंजीनियर ट्रेनों को चलाने के लिए जरूरी बिजली, सिग्नलिंग सिस्टम और पावर सपोर्ट को संभालते हैं। उनका काम ये सुनिश्चित करना होता है कि हर ट्रेन सुरक्षित और बिना रुकावट चले।
2. इलेक्ट्रिकल इंजीनियर रेलवे से जुड़ने के लिए कौन-सी योग्यता चाहिए?
आपको Electrical में डिप्लोमा या B.Tech पूरा करना होता है। इसके बाद RRB की भर्ती परीक्षाओं के माध्यम से चयन किया जाता है।
3. इलेक्ट्रिकल इंजीनियर की शुरुआती सैलरी कितनी हो सकती है?
शुरू में लगभग 35,000 से 1,00,000 रुपये तक कमाई हो सकती है, और अनुभव बढ़ने पर वेतन भी अच्छी तरह बढ़ता है।
4. इलेक्ट्रिकल इंजीनियर किन-किन जगह काम करता है?
पावर सप्लाई यूनिट, सिग्नलिंग सेक्शन, ट्रैक्शन डिस्ट्रीब्यूशन और मेंटेनेंस टीम – कई विभागों में काम करने का मौका मिलता है।
5. क्या इलेक्ट्रिकल इंजीनियर की नौकरी सुरक्षित मानी जाती है?
हाँ, क्योंकि यहाँ तय प्रक्रियाएँ और सख्त सुरक्षा नियम होते हैं, जिससे काम काफी सुरक्षित रहता है।
6. इलेक्ट्रिकल इंजीनियर का काम का समय कैसा होता है?
आम तौर पर 8 घंटे की शिफ्ट होती है, लेकिन फील्ड वर्क या अचानक आने वाली तकनीकी समस्या के कारण कभी-कभी अतिरिक्त समय भी देना पड़ सकता है।

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